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Saturday, April 21, 2012

मायावती की मानहानि करता हुआ कार्टुन प्रसिद्ध करनेवाले संदेश के तंत्री के खिलाफ कानूनी कारवाई

इस कार्टुन में मुलायम मायावती से कहता है, साले चमार और
मायावती उसे कह रही है, मुलायम, साले गंवार, बोलना शीख लें,
तनीक कानून का ध्यान रख.

गुजरात में मायावती की मानहानि करता हुआ कार्टुन प्रसिद्ध करनेवाले संदेश अखबार के तंत्री के खिलाफ सोलह साल पहले कानूनी कारवाई शुरु की गई थी. 1996 में जब एट्रोसीटी एक्ट के तहत कारवाई शुरु की गई तब तंत्री प्रशासन तथा गांधीनगर तक अपने प्रभाव के चलते सी समरी करवाने में सफल हुए थे. बाद में 2003 में सेशन्स कोर्ट ने मेट्रोपोलिटन मेजिस्ट्रेट के निर्णय के खिलाफ आदेश देते हुए फीर से जांच का आदेश दिया. उस आदेश के साथ हमारी अर्जी यहां प्रसिद्ध की है.



अहमदाबाद शहर एडी. सेशन्स जज की अदालत में
2003 की क्रीमीनल पुन:आदेश की अर्जी नं-234

अरजदार: वालजीभाई हिरालाल पटेल, उम्र 65, धर्म - हिन्दु, व्यवसाय निवृत्त, निवास - डॉ.आंबेडकर स्ट्रीट, फुटी मस्जिद के पास, दरियापुर, अहमदाबाद.
विरुद्ध
प्रतिवादी:     1. फाल्गुन चीमनभाई पटेल, तंत्री- संदेश दैनिक वर्तमानपत्र, रेंटियावाडी, पित्तलीया बंबा, अमदाबाद-380001.

2. गुजरात सरकार
अरजदार की तरफ से, विद्धान एडवोकेट श्री एच.  आर. सोलंकी
प्रतिवादी-1 की तरफ से एटवोकेट श्री पी. एन. पटेल
प्रतिवादी राज्य सरकार की तरफ से विद्वान ए. पी. पी. श्री एम. सी. वाघेला

फैसला

1.      अनुसूचित जातिओं और अनुसूचित जनजातिओं (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1) (10) के तहत शिक्षापात्र अपराध होने का आरोप रखकर अरजदार द्वारा दाखिल की फरियाद के कारण उत्पन्न कार्यवाही में सी समरी लागू पडने से माननीय  मेट्रोपोलिटन मेजीस्ट्रेट, कोर्ट नं-18 ने ता. 7-8-2003 को दिये आदेश की वजह से पुन:जांच मांग की गई है।

2.      यहां उपस्थित हुए प्रश्नों को अच्छी तरह से समझने के लिये कुछ संक्षिप्त हकीकतों का वर्णन करना जरूरी है, जो निम्न अनुसार है.

प्रतिवादी नं-1 दैनिक संदेश के व्यवस्थापक तंत्री और प्रकाशक है और ऐसा लगता है कि उक्त वर्तमानपत्र में ता. 29.7.1996 को एक आपत्तिजनक कार्टुन प्रसिद्ध हुआ था. जिसका इरादा अरजदार के कहेने के मुताबीक, अपमानजनक और अनुसूचित जातिओं और अनुसूचित जनजातियों के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का था, क्योंकि ये कार्टुन में उत्तरप्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री मायावती को हीन रूप से दर्शाया है. और अनुसूचित जाति के सदर मायावती को उत्तरप्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री मुलायमसिंह यादव अपशब्द बोलते है ऐसा दर्शाया गया है. रजूआत ये है कि कार्टुन का इरादा अनुसूचित जाति के लोगों की भावनाओं का ठेस पहुंचाने का था, जिसकी वजह से अरजदार ने व्यक्तिगत फरियाद की. निवेदन ये है कि, संबधित विद्धान मेजीस्ट्रेट द्वारा सीपीसी की धारा 156 (3) के तहत हुक्म किया गया और शाहपुर पुलिस स्टेशन के साथ जुडे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने जांच-पडताल की. निवेदन ये है इस तरह से हुई जांच के कारण उपस्थित परिस्थिति में किसी प्रकार का अपराध हुआ हो ऐसा दिखाई नही देता ऐसा जांच अधिकारी के द्वारा दिये गये रिपोर्ट को विद्वान मेजीस्ट्रेट ने बाद में आश्चर्यजनक रूप से स्वीकारा है और ऐसा भी निवेदन है कि, सी समरी का स्वीकार करना यह विद्वान मेजीस्ट्रेट के लिये स्पष्टत: भ्रांति है.
3.      अरजदार की तरफ से विद्द्वान एडवोकेट श्री सोलंकी ने रजूआत की है कि विवादीत हुक्म स्पष्टतया गेरकानूनी है और उसे रद्द करना अत्यंत जरूरी है. निवेदन ये है कि विवादीत फैसले को न्यायोचित गिना जाय ऐसा कोई कारण विद्धान मेजीस्ट्रेट ने दिया नहीं है. निवेदन ये है कि निर्णय के पन्ने नं-9 पर दिये गये सर्वोच्च अदालत के फैसले का प्रत्यक्षरूप से गलत अर्थघटन किया गया है. निवेदन ये है कि कार्टुन स्वंय भावनाओ को ठेस पहुचानेवाला है या फिर साले चमार शब्द अपमानजनक रूप से उपयोग करने का स्पष्ट उदेश्य दिखाई देता है. निवेदन ये है कि, अपने दैनिक पत्र में इस तरह का कार्टुन प्रसिद्ध करके प्रतिवादी नं-1 द्वारा प्रथम दृष्टि से स्पष्ट अपराध किया गया है और निवेदन ये है कि, इस परिस्थिति में विवादीत आदेश जारी न हो जाये और विनती है कि पुन:जांच की आदेश दे.

4.      पुन:जांच पडताल की अर्जी का विरोध करके प्रतिवादी नं-1 के विद्वान एडवोकेट श्री पटेल रजूआत करते है कि, पुन:जांच पडताल का ग्राह रखने की जरूरत नही है, क्योंकि प्रथम तो अरजदार दावा करने का अधिकार नहीं रखता. रजूआत ये  है कि, किसी भी संजोग में, डेप्युटी पुलिस अधीक्षक कक्षा के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने अदालत के निश्चित फैसले के तहत फरियाद की जांच की है और उन्हें प्राथमिकरूप से लगता है कि कोई अपराध हुआ ही नही है और उन्होंने सिफारिश की है कि सी समरी फाईल करके कार्यवाही पूरी कर देनी चाहिये. निवेदन ये है कि पुलिस अधिकारी की इस सिफारिश का विरोध करने के लिये अरजदार को छूट नही है और किसी भी संजोग में विद्धान न्यायमूर्ति ने जांच अधिकारी के द्वारा पेश किये विवरण को योग्य रूप से ध्यान में लिया है और वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे है कि किसी भी प्रकार का अपराध ना होने के कारण कार्यवाही पूरी कर देना जरूरी था. रजूआत ये है कि विवादीत कार्टुन में मात्र दो व्यक्ति, एक श्री मुलायमसिंह यादव और दूसरी है सुश्री मायावती को दर्शाया होने का और वह उन्ही के संदर्भ में होने का स्वीकार करने से अरजदार, किसी भी संजोग में, फरियाद नही कर सकता और अगर कार्टुन प्राथमिक तौर पर कोई अपराध करता हो तो भी, इस संदर्भ में फरियादी को फरियाद करने की छूट नही हो सकती. हकीकत में, सदर कार्टुन प्रभावित व्यक्ति, सदर कु. मायावती और श्री मुलायमसिंह यादव को इसके संदर्भ में कोई तकरार हो सकती है, रजूआत ये है कि अरजदार की इस संदर्भ किसी भी तकरार की सुनवाई नही हो सकती और निवेदन ये है कि, इस परिस्थिति में विवादीत आदेश देने के बदले विद्वान न्यायमूर्ति पक्ष ने कुछ भी गलत, अयोग्य या गैरकानूनी नही है और जिससे इस विषय में किसी हस्तक्षेप की जरूरत नही और पुनजांच पडताल को रद्द कर देना चाहिये.

5.      ये ध्यान पर लेना जरूरी है कि, दोनों पक्षों के निवेदनों को ध्यान में लेकर और ट्रायल कोर्ट के रिकार्डस और कार्यवाही को ध्यान में लेने के बाद लगता है कि, दोनो वादीओ ने यानि की अरजदार के साथ ही प्रतिवादी नं-1 दोंनो ने बहुत से निर्णयों का आधार लिया है. परन्तु इस अहेवाल को समग्ररूप से पुन:तपास के लिये विद्द्वान मेट्रोपोलिटन मेजीस्ट्रेट की अदालत में भेजने की कार्यवाही के लिये ये केस योग्य है, ऐसा मेरा मंतव्य है और इसी वजह से उपरोक्त फैसलों का संदर्भ फीर देने की जरूरत नही है. मेरे नजरिये से, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातिओं के लोंगो की भावनाओं को ठेस पहुंचे इस तरह का अपराध होने का पर्याप्त प्रथमदर्शी सबूत काटूर्न देता है. रोसम्मा थोमस और अन्य के खिलाफ सर्कल इन्सपेक्टर ऑफ पुलिस, त्रिपुनिथारा और अन्य केस में (1999 Cri. L. J. 1666) केरल हाईकोर्ट ने दिये फैसले में स्पष्टतौर पर गौर किया है कि अनुसूचित जनजाति के सदस्यों का खुलेआम अपमान करने का या फिर उसे नीचा दिखाना प्राथमिक गुना अथवा इरादा एट्रोसीटी एक्ट की धारा 3 (1) (10) के तहत अपराध माना जायेगा और सिर्फ जाति के नाम पर संबोधन करना ये अपराध है या नहीं, आरोपी का इरादा था या नहीं ये सभी प्रश्न प्रारंभिक तौर पर नक्की नहीं हो सकते और शुरूआत में एफआईआर रद्द नही कर सकते. अरजदार फरियाद दाखिल करने और पुन:तपास करने के लिये कानूनी सत्ता नही रखते और श्री पटेल की रजूआत में मुझे कोई खास वजूद नहीं लगता. एस्ट्रोसीटी एक्ट की धारा 3 और खासतौर पर सदर का कानून की धारा 3 (1) (10) के प्रावधान को पढने से स्पष्ट लगता है कि, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगो का जाहेर में अपमान करने की वृत्ति रखनेवाले व्यक्ति के द्वारा किये गये अपराध किसे कहते है इस विषय में ध्यानपूर्वक विचार किया गया है. अनुसूचित जाति के किसी व्यक्ति को अगर सार्वजनिक अपमान का सीधा असर न होती हो तो, इसके संदर्भ में फरियाद दाखिल करते समय रोके अथवा ऐसा कुछ भी उपरोक्त प्रावधान में देखने को नही मिलता, ऐसा मेरा मानना है. मेरे अनुसार, एस्ट्रोसीटी एक्ट की धारा 3 (1) (10) में समाविष्ट प्रावधान को पुन: उद्धृत करना जरूरी है, जो निम्न अनुसार है.

             3. अत्याचार के अपराधों के लिये सजा.
 1. अनुसूचित जातिओं और अनुसूचित जनजातिओं का सदस्य ना  हो ऐसा कोई व्यक्ति,

10. किसी भी सार्वजनिक स्थानों पर अनुसूचित जातियों अथवा अनुसूचित जनजातियों के किसी सदस्य को अपमानित करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करे या नीचा दिखाये तो दंड सहित 6 महिने से कम और पांच साल तक बढाकर उससे ज्यादा हो सकती.

मेरे मतानुसार इस संदर्भ में पटेल के निवेदन में कोई योग्यता नहीं है. तथा प्रारंभिक तौर पर एफआईआर रद्द करना गलत तथा अयोग्य होगा, जो विवादीत हुक्म के कारण हुआ है. मेरे मतानुसार विवादीत हुक्म में पुन:विचारणा करने की जरूरत है और पक्षकारो को उनके तथ्यों को फिर से प्रस्तुत करने का मौका देना चाहिये. इसलिये मैं निम्न आदेश देता हूँ.

आदेश
पुन:जांच पडताल करने का आदेश दिया जाता है. ता. 7-8-2003 के विवादीत आदेश को रद्द किया जाता है. शाहपुर पुलिस स्टेशन के साथ जुडे पुलिस अधिकारी के द्वारा प्रस्तुत की गई अर्जी के विषय में पुन:जांच पडताल करने के आदेश के साथ कार्यवाही विद्वान मेट्रोपोलिटन मेजीस्ट्रेट कोर्ट नं-18 कोर्ट को सुप्रत किया जाता है. और एट्रोसीटी एक्ट की धारा 3 (1) (10) के प्रावधान को अनुसार हकीकत और परिस्थितियों को ध्यान में लेने के बाद ही योग्य आदेश दिया जाता है. उसके अनुसार पुनतपास रद्द की जाती है.

ता. 31 जनवरी 2005 को भरी अदालत में सुनाया गया है.

                          (पी.बी.देसाई)
                       एडीशनल सेशन्स जज
                    कोर्ट नं-6, अमदाबाद शहेर.











1 comment:

  1. matlab ke bharat ma haji nyay mari nathi parvaryo. haal case ketle pahochyo che sir.

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