Total Pageviews

Sunday, April 15, 2012

बाबासाहब को संविधानसभा में किसने भेजा - बेचारे मोदी को क्या पता


प्राचीनकाल में जिन्हे चांडाल के नाम से बुलाया
जाता था, वही नामशुद्र जाति के सदश्य का यह
चित्र 1860 का है. बाबासाहब को संविधानसभा
में भेजनेवाली यह जाति का इतिहास हम भूल
जाएंगे तो हमें हमारी भावी पीढियां माफ नहीं करेगी


'सामाजिक समरसता' के प्रकरण 'डॉ. बाबासाहब अंबेडकर: क्रान्तिकारी समाजपुरुष' में संघ के कट्टर प्रचारक मोदी इतिहास को तोडमरोड के रखने का सीलसीला जारी रखते हुए आगे लिखते हैं, "उस समय (मतलब आज़ादी के आंदोलन के दौरान) समूची कांग्रेस बाबासाहब अंबेडकर के खिलाफ थी. अंबेडकरवादी होने का अर्थ गुनहगार होना ऐसा उस समय का माहौल था. कांग्रेस का संपूर्ण संघर्ष अंबेडकरवादी लोगों के सामने था. देश पर कांग्रेस का झंडा लहराता था और देश में बाबासाहब अंबेडकर के बारे में लोग को ज्यादा पता न चले ऐसी कवायत योजनाबद्ध तरीके से हुई थी."

श्रीमान मोदी की इस बात को इतिहास की सच्चाई के संदर्भ में जरा देख लें. आज़ादी के संग्राम में समूची कांग्रेस बाबासाहब के खिलाफ थी, यह बात तो सही है. मगर वह कांग्रेस गांधी-सरदार-नेहरु की थी. देश में कांग्रेस के समग्र संगठन पर सरदार वल्लभभाई पटेल का प्रभुत्व था. और उन्ही के कहने से बाबासाहब को संविधान सभा में जाने से रोका गया था, और योजनाबद्ध तरीके से उनको महाराष्ट्र में चुनाव में हराया गया था. बाद में जोगेन्द्रनाथ मंडल जैसे दलित नेता, जो पूर्व पाकिस्तान (आज के बांग्लादेश) में मुस्लीम लीग के साथ थे, उनकी सहायता से बाबासाहब देश की संविधान सभा में गए थे. जोगेन्द्रनाथ मंडल ने बाबासाहब को समर्थन देकर कांग्रेस और सरदार वल्लभभाई पटेल की साज़िश नाकाम की थी.

बाबासाहब को (और उस वक्त कुछ समय के लिए मुस्लीम लीग को) समर्थन देने का दु:साहस करनेवाले मंडल की जाति नामशुद्र के समूचे क्षेत्र, हालांकि वह हिन्दु-बहुल क्षेत्र था, को सजा के तौर पर विभाजन के दौरान भारत से अलग करके (पूर्व) पाकिस्तान को सौंप दिया गया था. 1947 के बाद शुरु हुए सांप्रदायिक पागलपन में (पूर्व) पाकिस्तान के दलितों के साथ वहां के मुसलमानों ने नाइन्साफी की, दलित-विरोधी दंगों के बाद बीस लाख से ज्यादा दलित शरणार्थी होकर भारत में (अर्थात पश्चिम बंगाल) में आए. सीपीएम के बम्मन कम्युनिस्टो नें भी इन दलित शरणार्थीओ के प्रति कोई सहानूभूति नहीं दिखाई थी.

दलितों का इतिहास इस तरह से रक्तरंजित है और दिल को दहेलानेवाला है. संघ के प्रचारक इस तथ्यों को तोड मरोड कर रखते हैं, मगर हम इसे भूल नहीं सकते. नामशुद्र जाति आज भी जिंदा है. अपना पुराना कलंकित नाम नामशुद्र छोडकर नया गौरवान्वि नाम 'नामसेज' उन्होने अपनाया है. उनकी एक वेबसाइट नामशुद्र डोट कोम भी है, आप उसे अवश्य देखें.


7 comments:

  1. Thanks for providing important information. Thanks again.

    ReplyDelete
  2. thanks for tihs valuable truth information.

    ReplyDelete
  3. thanks for providing the historical fact. modi does know this is incorrect, in fact, he is distorting fact in his interest,

    ReplyDelete
  4. पता नहीं क्यों 85% के लोग अपने महापुरूषों तथा अपने इतिहास से अलग रहना चाहते हैं।

    ReplyDelete
  5. पता नहीं क्यों 85% के लोग अपने महापुरूषों तथा अपने इतिहास से अलग रहना चाहते हैं।

    ReplyDelete