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Thursday, April 5, 2012

दलित-मुसलमान को लडाने की साजिश


 वह प्रतिमा जिसे
तोडने की  अफवाह फैलाई गई
इस साल चौदह अप्रैल को गुजरात के किसी शहर में डॉ. बाबासाहब अंबेडकर की प्रतिमा का खंडन हुआ है ऐसा कोई रीपोर्ट आपको मिले और यह काम मुसलमानो ने किया है ऐसा उस रीपोर्ट में उल्लेख हो तो, हमें याद करना. हो सकता है कि ऐसी कोई घटना हुई ही ना हो. बीजेपी के सेफ्रन षडयंत्रकारियों की दलित और मुसलमान को लडाने की यह एक नई साज़िश भी हो सकती है. हम ऐसा दावे के साथ कह सकते है, क्योंकि पीछले साल सचमुच ऐसा षडयंत्र गुजरात के राजकोट शहर में गढ़ा गया था और उसे पुलीस की मदद से बखूबी अंजाम दिया गया था.

दलित अपने घरों को ताला लगाकर नीकल गए
हिन्दु राष्ट्र की पुलीस पीछे जो पडी थी
2011 की उस चौदह एप्रैल के दिन राजकोट शहर के गांधी वसाहत विस्तार में बाबासाहब की प्रतिमा का खंडन हुआ है और मुसलमानों ने ऐसा घिनौना काम किया है, ऐसी एक भयानक अफवाह फैलाई गई थी. यह अफवा किसने फैलाई यह तो किसी को मालूम नहीं था, मगर उसके बाद कुछ ही मिनटों में प्रतिमा के आसपास के क्षेत्र में रहते दलितों और मुसलमानों के बीच दंगा शरू हो गया.


घटना के पंद्रह दिनों के बाद भी ऐसी हालत थी 
पुलीस ने आकर दलितों को पीटा, सीपीसी की विविध धाराओं तहत कुल पांच एफआईआर दर्ज की और दलितों तथा मुसलमानों दोनों समुदायों के लोगों को लोकअप में डाल दिया. एक जगह पर चार-पांच दलितों की टोली पथराव करने नीकली थी तब कैसे पूरी इलेक्ट्रोनिक मीडीया की फौज उधर पहुंच गई और बार बार दंगाई दलितों के क्लिपिंग्स टीवी पर आने लगे. कुछ देर के बाद शहर की पुलीस कमिशनर गीता जौहरी उस जगह पहुंची और उसने उस तथाकथित प्रतिमा को वापस अपनी जगह पर रख दिया!

विपुल गोहील (14 वर्ष)

हमने ता. 30 अप्रैल को घटना स्थल की तहेकीकात की. प्रतिमा वहीं की वहीं है. उसे जरा सा भी नुकसान नहीं हुआ था. अगर कोई सचमुच इस प्रतिमा को हाथ से या कीसी चीज से गीरा देता है तो जरूर उसे क्षति पहुंचती. लगता था किसीने जानबूझकर प्रतिमा को संभालकर जमीन पर रख दिया था और अफवा फैलाई थी. दलितों को जो नुकसान होना था हो चुका था. उसी दिन घटना स्थल से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित महात्मा गांधी होस्टेल के दलित विद्यार्थीओं के साथ जो हुआ उससे षडयंत्र की बात को और पुष्टि मीलती है.

राहुल राठोड, पुलीस के समन्स अभी
भी उसका पीछा नहीं छोडते
होस्टेल के विद्यार्थियों ने जब प्रतिमा खंडन के बारे में सूना तो, कुछ विद्यार्थीओं ने होस्टेल के दरवाजे पर विरोध प्रदर्शन किया. थोडी देर में वहां आ पहुंची मालवियानगर की पुलीस चार मजले की उस होस्टेल में घुसकर,  विद्यार्थियों के कमरों के दरवाजे तोडकर, गालियां देकर, सबको बाहर निकालकर, मारते हुए पुलीस स्टेशन ले गई. हम जब होस्टेल में उन  विद्यार्थियों  से मीले तब वे परीक्षा की तैयारियां कर रहे थे. उन्होनें हमें बताया कि किस तरह से पुलीसने जुल्म किया.


संजय काथड, एम.ए. पार्ट टु की तैयारी
कर रहा था, और पुलीस तूट पडी 
पुलीस मारते वक्त गालियों की बौछार करती हुई कह रही थी, "हमने तूम्हारे बाप का पूतला नहीं तोडा है.......वहां गांव में तूम्हारा बाप चमडा मसल रहा है...." पुलीस जब विद्यार्थीओं को मार रही थी तब होस्टेल के दरवाजे पर सारे मीडीयावाले इकठठा हो गए थे, लेकिन किसी को पुलीस ने होस्टेल में जाने नहीं दिया था.


दिलीप मकवाणा, पुलीस ने इतनी बेरहेमी से मारा कि
चलने के काबिल भी नहीं रहा 
विद्यार्थियों को पुलीस  मालवियानगर पुलीस स्टेशन ले गई और उनको पूछा कि किस किस को चोट लगी है. जब कुछ विद्यार्थीओं ने अपनी चोट के बारे में बताया तो उन्हे सरकारी अस्पताल में चिकित्सा के लिए भेजा गया और उन सभी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई. सरकारी अस्पताल में विद्यार्थीओं ने अपनी चोटों के बारे में जो कुछ बी बताया, वह सारे तथ्य एमएलसी के दाक्तरी सर्टिफिकेटों में मौजुद है. चुंकी होस्टेल सरकारी है, इस लिए होस्टेल के गृहपति ने सरकार के समाज कल्याण विभाग को कम्प्लेइन करके सारी बातें बताई थी, फिर भी कोई भी कदम उठाया गया नहीं था.

मुसलमान औरतों ने बताया कि दंगे में किसी को कुछ
नुकसान नहीं हुआ, प्रतिमा खंडन के बारे में मालुम नहीं
हम बाद में प्रतिमावाले क्षेत्र गांधी वसाहत में गए थे और मुसलमान महिलाओं से मिले थे. उन्होने बताया था कि किसीको भी उस दिन दंगे में कोई नुकसान नहीं हुआ था. लेकिन दलितों में अबी भी पुलीस का आंतक बना हुआ था और लोग अपने घरों को ताला लगाकर भाग निकले थे. गुजरात में दलितों को हिन्दुत्व के पाठ शीखाने का नरेन्द्र मोदी का यह एक ऐसा तरीका है, जिसके बारे में अभी भी दलितों की आंखें खुली नहीं है.


शायद हिन्दुत्ववादियों को यही बात चूभती है .....
इस क्षेत्र में दलित और मुसलमान के बीच कैसा सदभाव था, इसका बहुत अच्छा उदाहरण हमें देखने को मिला. बाबासाहब की प्रतिमा के ठीक सामने गोविंदभाई अघोरा नाम के दलित के घर पर लगाई हूई तक्ती पे लिखा है, 'निगाहे करम' और उसके साथ कुराने शरीफ का चित्र भी है. दलितों और मुसलमानों के बीच कैसा सौहार्द है इसका इससे बडा प्रमाण आपको कहीं भी नहीं मिलेगा. शायद हिन्दु कट्टरपंथियों को यही बात चूभती होगी, जिसे नष्ट करने के लिए प्रतिमा खंडन की अफवाह फैलाई गई थी.  

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