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Sunday, March 31, 2013

भगवा झंडा तले कोबरा गेंग का आतंक


अस्पताल में लवजीभाई चमार 

राजु सोलंकी

"आप जिस रास्ते से आये वहां गांव की डेरी है. डेरी की एक तरफ उनकी (सवर्णों की) मांडवडी है. नवरात्रि के समय हम गरबे में भाग नहीं ले सकते. हमारी कोई लडकी वहां जाती है तो वे उसका हाथ पकडकर बाहर निकाल देते हैं. इसलिए हम उनकी मांडवडी की तरफ नजर भी नहीं करते. वो लोग होली जलाते है तब भी हम नहीं जा सकते. हमारा छोटा बच्चा भी प्रसाद लेने गया तो मार पडती है. तीन साल पहले गांव में रामजी मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा की गई थी. हमारे वास (मुहल्ले) में से मगनभाई कंडक्टर अकेले ही गये थे. उनका कंधा पकडकर बाहर कर दिया."
यह व्यथा है साबरकांठा जिल्ला के मोडासा तहसील के जंबुसर गांव के दलितजनों की. जंबुसर अरवल्ली की पहाडियों में बसा छोटा सा सुंदर गांव है. कुल मिलाकर 120 घरों की बस्ती वाले जंबुसर में पटेलो की संख्या ज्यादा है. दलितों की बस्ती उनसे थोडी कम है. प्रजापति, ठाकोर, पूजरा के यहां वहां घर है. जंबुसर, मोतीपुरा, हठीपुरा और मठ इन चारों गांवों की ग्रुप पंचायत है. जंबुसर के दलितों में शिक्षण का प्रमाण ज्यादा है और इक्कीस दलित सरकारी नोकरी में है. दलितों के पास जमीन नहीं है, परंतु उनकी सरकारी नोकरियां गांव के खाते पीते संपन्न जमीनदार पटेलों की आंखों में चुभती है.
18 फरवरी को डाह्याभाई गलाभाई चमार के घर विवाह प्रसंग था और गांव के सार्वजनिक चबूतरे पर विवाह स्वागत का बेनर लगाया था. हार्दिक केवलभाई पटेल और कोमल केवलभाई पटेल ने स्वागत बेनर उतार दिया और उनके साथ छ अन्य पटेल युवानों ने बेनर को जला कर उस पर पेशाब कर दिया. घटना से विक्षुब्ध दलित फरियाद लिखवाने जा रहे थे. परंतु इन दबंग युवानों के माता-पिता ने दलितों को समझाया और उन्होने वीस रूपियेवाले स्टेम्प पेपर पर समाधान का मसौदा लिखकर दिया. मसौदा में इन्होनें अपना नाम तो लिखवाया परंतु हस्ताक्षर नहीं किये.
इस घटना के बाद 2 मार्च को शाम के 6.30 लवजीभाई चमार बैलगाडी लेकर खेतों से वापस आ रहे थे. तभी पंचायत के पास दस पटेल युवक रास्ते में बाईक को आडी करके खडे थे. लवजीभाई ने उनसे बाइक हटाने को कहा तो उन्होने, "यह जगह तेरी बाप की है?" कहकर जाति विषयक गाली दी. लवजीभाई ने भी कहा, "तो क्या यह जगह तुम्हारे बाप की है?" मानो लवजीभाई के बोलने की राह ही देख रहे हो उस तरह "मार डालो साले को" ऐसा कहकर उन्होने लवजीभाई को गाडी से नीचे गिरा दिया और उन पर लातों की बौछार कर दी. लवजीभाई के नाक में से खून निकलने लगा, उनका कपडा खून से रंग गया.
"काका को जब में पुलिस स्टेशन ले गया तब पीएसआई देसाई मौजूद थे. उन्होने एफआईआर लिखी और इलाज के लिए होस्पीटल भेज दिया. वहां उनका इलाज नहीं हो रहा था वहां भी मुझे लडना पडा. होस्पीटल के ट्रस्टी सायरा के पटेल है," लवजीभाई चमार के भतीजे महेन्द्रभाई चमार ने बताया. महेन्द्रभाई लेबर कोन्ट्राक्टर है. "मुझे तो बाद में मालूम पडा कि कोई कोबरा गेंग बनाई है इन लोगों ने दलितों को हेरान करने के लिए," महेन्द्रभाई ने हमें बताया. इस घटना से दलित बच्चें इस कदर डर गये है कि स्कूल जाने से भी डरने लगे हैं. दस दिन तक दलितवास को पानी नहीं दिया गया. अभी दलितों को दूध भी नहीं मिलता. गांव में कुछ पटेल बूरे भी नहीं है. भीखाभाई कोदरभाई दलितों को दूध देते थे. परंतु उन्हे दूसरे पटेलों ने धमकाया और उन्होने दूध देना बंद कर दिया. फिलहाल जंबुसर के दलित एक किमी. दूर ददालिया से दूध लाते हैं.
17 मार्च को हमारे साथ गांधीनगर अनुसूचित जाति एकता मंच के कन्वीनर्स नारणभाई वाघेला, सोमभाई वाघेला, निवृत्त समाज कल्याण अधिकारी मणिलाल सोलंकी तथा प्रसिद्ध दलित साहित्यकार बी. केशरशिवम ने जंबुसर की मुलाकात ली. हमने समाज कल्याण अधिकारी हसमुख परमार के साथ बात की. 2 मार्च के दिन लवजीभाई पर हमला होने के बाद हसमुखभाई तुरंत ही जंबुसर पहुंच गये थे. परंतु उस वक्त सामाजिक बहिष्कार शुरू नहीं हुआ था. इसलिये हमने उनसे बात की और बहिष्कार का रिपोर्ट जल्द से जल्द गांधीनगर भेजने की सूचना दी और उन्होने अपना रिपोर्ट भेज दिया है. इस लेख के लिखे जाने तक आरोपियों की गिरफ्तारी हो चुकी है.
श्री केशरशिवम ने डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के गुजराती में अनुवादित ग्रंथो का सेट जंबुसर के दलितों को दिया और दलितवास में पुस्तकालय शरू करने की बात कही. गांव के मुकेश बोदरभाई सहित अन्य युवान बाबासाहेब के विचाराधारा के साथ वर्षो से जुडे है और उनके साथ जलोदर के टीचर दिनेशभाई, मेघरज कोलेज के प्रोफेसर ब्रिजेश राठोड भी मुलाकात के दौरान उपस्थित थे.
मेडासणा के बुजुर्ग लालाकाका ने पूछने पर बताया कि 68 गांव परगना का यह 12 परगना है. राजस्थान के मेवाडा से लेकर वीरवाडा तक 150 किमी. के पट्टे में परगना फैला है. बरसों पहले उन्होने भोज किया तब नात बुलाई थी. कितने लोग आये थे उसका अंदाजा नहीं है, परंतु आये हुए लोगों को क्या भैंट में क्या दिया तथा कितना भोजन बना उसके आंकडो से हम कल्पना कर सकते हैं. 30 मण चावल. 25 मण गेंहू, 25 डब्बे घी का उपयोग हुआ था और 80 किलो तांबा बर्तन के तौर पर दिया गया था. मैंने कहा फिर से परगना बुलाओ और डॉ. बाबासाहब आंबेडकर की विचारधारा पर चलने के लिये लोगों को इकठ्ठा करो.