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Tuesday, September 4, 2012

मूलनिवासी नेतृत्व


ज्यादातर सभी मूलनिवासी नेता, राजनीतिक ही नहीं सामाजिक नेता भी तानाशाही प्रकृति के हैं. अपने को संगठन से ऊपर समझते हैं. संगठन को अपनी जेब में रखना चाहते हैं, और कार्य-कर्ताओं को बंधुआ मजदुर. संगठन को बढ़ाने की बजाय अपने को बढ़ाने का कार्य करते है. कई गुमराह मूलनिवासी समर्थकों को भी तानाशाह पसंद आ जाते हैं, क्योकि प्रजातांत्रिक तरीके में उनको भी जागरूक रहकर भागीदार बनना पड़ता है, जबकि नायक पूजा/तानाशाही में वे अपना तकदीर नेता के हाथ में सौंप कर चैन से सोना चाहते है ....... जब तक संगठन में आन्तरिक प्रजातंत्र लागु नहीं होता, यह समस्या बनी रहेगी. एक तानाशाह का विरोध तो ठीक है, पर दूसरा तानाशाह पैदा करना महा मुर्खता है... आज हमें उद्देश्य के लिए समर्पित, विचारधारा के प्रति जागरूक संस्थागत नेतृत्व की जरुरत है. हमारे दुश्मनो को भी व्यक्तिवादी संगठन (ऐसा संगठन जो एक व्यक्ति के इर्द -गिर्द घूमता है) अनुकूल रहेता है, क्योंकि उन्हें एक व्यक्ति को खरीदने, नेगोसियेट करने में या उसकी कमजोरियां उजागर कर उसे इस्तेमाल करने में आसानी होती है. इसलिए दुश्मन हमेशा मूलनिवासियो में व्यक्तिवादी संगठन और तानाशाही नेतृत्व को बढ़ावा देता है ...... और मनुवादी मीडिया भी ऐसे मूलनिवासियों के व्यक्तिवादी संगठन और तानाशाही नेतृत्व को प्रचारित एवं प्रसारित करता है.

                                                           (सुनिल गौतम)