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Friday, June 15, 2012

ब्लड अन्डर सेफ्रन




गुजरात में 2002 के दंगो के दौरान गोधरा ट्रेन दुर्घटना के बाद एक सोची समजी साजिश के तहत गुजरात पुलीस ने सिर्फ अहमदाबाद के 33 पुलीस स्टेशनों में 2945 लोगों को तथाकथित छोटे मोटे अपराधों तहत गिरफ्तार किया था. जहां पर जघन्य हत्याकांड हुए थे ऐसे मेघाणीनगर (17), सरदारनगर (28) और नरोडा पाटीया (53) क्षेत्रो में जानबुझकर पुलीस ने कोई भी कारवाई नहीं की थी. हमने ये तमाम गिरफ्तारियों का जाति-पृथक्करण (कास्ट एनेलीसीस) किया. पूरे छ: महिने की महेनत के बाद हमने जाना कि इस में 797 बक्षी पंच के लोग (ठाकोर, रबारी, देवीपूजक वगैरह), 747 दलितों, 9 सवर्ण जातियों के लोग, 19 पटेल, 2 बनीया तथा 2 ब्राह्मण थे.

गोधरा-कांड के दूसरे दिन गुजरात के दो मंत्री नरेन्द्र मोदी के कहने पर पुलीस कमिशनर के कन्ट्रोल रूम में बैठकर सभी हत्याकांडो की निगरानी रख रहे थे. उसमें एक मंत्री अशोक भट्ट अब इस दुनिया में नहीं है. अशोक भट्ट 1981 से 1990 तक गुजरात में आरक्षण विरोधी आंदोलन का प्रमुख सूत्रधार रहा. 1985 में अहमदाबाद के खाडीया क्षेत्र में रबारी जाति के एक पुलीस कर्मी पर तीसरे मजले से बडी शिला फेंककर हुई हत्या के केस में अशोक भट्ट अभियुक्त था. बरसों तक वह केस चला, कोई नतीजा नहीं आया.

गुजरात के कोमी दंगों में दलितों ने हिस्सा लिया ऐसा दुष्प्रचार दुनियाभर में करने में कांग्रेस और बीजेपी दोनों को बहुत मजा आया. क्योंकि इस देश में दलितों की छवी जितनी कोम्युनल हो, आनेवाले दिनों में दलितों के नेतृत्व में कोई राजनीति चलने की संभावना कम हो जाय. हमने इस खतरे को भांपते हुए 'blood under saffron' (गुजराती में 'भगवा नीचे लोही') किताब लिखी है. हमारे एनालीसीस के आधार पर प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक राकेश शर्मा ने एक डोक्युमेन्टरी भी बनाई है. अब समग्र किताब हमने हमारे ब्लोग पर रखी है.

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