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Thursday, June 7, 2012

हम गुजरात के बुद्धु लोग



हम महाराष्ट्र के दलितों का बहुत आदर करते थे. महाराष्ट्र की पावक धरती पर डॉ. बाबासाहब अंबेडकर पैदा हुए, जोतिबा फुले पैदा हुए. वहां से कोई आदमी गुजरात में आता, हमें बाबासाहब की बातें सुनाता. हम उसे कुर्सी पर बिठाते थे और हम नीचे बैठते थे. हम उन्हे स्वयं बाबासाहब ही समजते थे. हम तो नाचीज थे. वे हमें हमारी मर्यादाओं का अहेसास कराते थे. हमारे पुरखों ने बाबासाहब को काले झंडे दिखाये थे. उन्हो ने हमारे इतिहास का सबसे काला पन्ना लिखा था. वो बेवकूफ थे. हम भी बेवकूफ है. इसलिए तो हम हमेशां महाराष्ट्र का अनुकरण करते रहें. वहां आरपीआई बनी, हमने गुजरात में भी आरपीआई बना दी. वहां दलित पेंथर बना, हम यहां भी दहाडने लगे. वहां आरपीआई के दो टुकडे हुए, यहां हमने भी टुकडे कर डाले. आरपीआई के जितने टुकडे वहां हुए, उतने हमने यहां बना डाले. पेंथर से मास मुवमेन्ट बना, हमने उसकी शाखा भी यहां खोल दी. कोई कवाडे सर आया, हमने दलित-मुस्लीम सुरक्षा महासंघ का भी रस चख लिया. कोई बोरकर आया, हम उसके नौकर हो गए. हमने कभी सोचा नहीं कि हमारे महाराष्ट्र के बडे भाईलोग बहुत बुद्धिशाली है, मगर घमंडी, मगरूर और अहंकारी भी है. ना तो उन में कोई एकता है, ना वे हम में कोई एकता करायेंगे. हां, जय भीम, जय भीम बोलना शीखा लेंगे. मगर इस देश के हरामी, हुक्मरानों को कोई चेलेन्ज हम नहीं दे सकेंगे. हम गुजरात के बुद्धु लोग अभी भी नहीं समज रहे. हम अभी भी महाराष्ट्र के दलितों का  आदर करते हैं. जय भीम. जय महाराष्ट्र. जय गुजरात.

1 comment:

  1. nice. See your friend's poem on http://pjadav.blogspot.in/

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