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Saturday, May 19, 2012

गांधीनगर की हण्डी में मानव अधिकार का गुड

वेलकम टु क्लीन चीटींग ऑफ गुजरात

पीछले साल नेशनल कमिशन फोर धी प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (एनसीपीसीआर) के चेरपर्सन शांतासिंहा ने मुझे न्यौता दिया था, नागपुर में कमिशन के हीयरींग में ऑब्झर्वर की हैसियत से उपस्थित रहने का. हीयरींग के लिए कमिशन की प्रोसीजर कुछ इस तरह की है: कमिशन सबसे पहले राज्य में एक एनजीओ को नोडल एजन्सी का काम करने के लिए चुनता है. यह नोडल एजन्सी अन्य एनजीओ के साथ संकलन करके बाल अधिकार संबंधित शिकायतें इकठ्ठा करती है, एक खास तरह के फोर्मेट में केस स्टडीझ तैयार करती है और कमिशन को भेजती है. कमिशन शिकायतों के संदर्भ में संबंधित अधिकारीओं को समन्स भेजता है. हीयरींग की तारीख तय होती है, उस तारीख पर उपस्थित रहने के लिए फ़रीयादी को कहा जाता है और अधिकारी अपना पक्ष रखने के लिए आवश्यक काग़ज़ात लेकर हीयरींग में उपस्थित रहता है. हीयरींग बंद कमरे में नहीं होती. पांचसौ लोगों की उपस्थिति में फ़रीयादी अपनी शिकायत पेश करता है, कमिशन के सदस्य अधिकारी की कड़ी परीक्षा लेते है, उसे डांटते है और लोग उसे देखकर जब तालियां बजाते है, तब हमें लगता है कि यही वह लोकतंत्र है, जिसके लिए हम तडप रहे हैं. संबंधित फ़रीयाद को लेकर क्या कदम उठाये गए हैं, इसका ब्यौरा अधिकारी को देना पडता है, अगर उसने कोई कदम नहीं उठाया तो उसे तूरन्त वह उठाने की चेतावनी भी दी जाती है.

गुजरात में 10 मई, 2012 के दिन नेशनल ह्युमन राइट्स कमिशन (एनएचआरसी) ने सुबह गांधी लेबर संस्थान में और दोपहर एनेक्सी में जो कुछ किया, वह इस अर्थ में हीयरींग नहीं था. वह तो एक तरह का राजदरबार था. दलित कर्मशीलो-एनजीओवाले जिसमें आते हैं और दूसरे दिन टाइम्स ऑफ इन्डीया लिखता है, उस तरह अपना ह्रदय बहा देते है (Dalits poured their hearts out in hearing). भारत सरकार का इतना बडा कमिशन गुजरात में सिर्फ शिकायतें इकठ्ठा करने के लिए आता है और दूसरे दिन अधिकारीओं के साथ रखी गई मीटींग इतनी गुप्त होती है कि पत्रकारों को भी वहां से भगा दिया जाता है तो कमिशन ने गांधीनगर की हण्डी में मानव अधिकार का गुड तोडा वैसा ही हम कहेंगे. (किसी भी बात गुप्त तरीके से होती है, उसमें पारदर्शीता नहीं होती, तो हम गुजराती में कहते है, कुलडी मां गोळ भांग्यो) मुझे मेरा ह्रदय बहाने के लिए कमिशन के पास जाने की क्या जरूरत है? एक कविता लिखुंगा तो भी ह्रदय खाली हो जाएगा, उपर से समाज कल्याण का एवोर्ड भी मीलेगा. मगर मुझे न्याय चाहिए. कमिशन के पास अर्ध-न्यायिक सत्ता है, उसका उसे उपयोग करना है, नौटंकी नहीं करनी. एनेक्सी की मीटींग में मैंने कमिशन के चेरपर्सन तथा सदस्यों के समक्ष यह बात रखी थी, जिसका उनके पास कोई जवाब नहीं था.

एनसीपीआर के हीयरींग में वाकई में दम होता है. इसी वजह से तो चार महिना पहले एनसीपीसीआर का हीयरींग स्थगित कराने के लिए श्रम विभाग के सचिव पनीरवेल, मुख्य सचिव जोती तथा समाज कल्याण मंत्री फकीरभाई वाघेला ने मेडम शांतासिंहा को पर्सनल लेटर्स लिखकर गिडगिडाकर हीयरींग बंद रखवाया था. तीनों के पत्र मेरे पास है. दुनिया के सामने तीसमारखां बनने का दिखावा करनेवाली गुजरात सरकार गुप्तरूप से कैसी याचनाएं करती है, इसके ये सुंदर, कलात्मक उदाहरण है.

कमिशन ने दूसरे दिन मोदी सरकार को जिस तरह से क्लीन चीट दी है, इससे यह साबित होता है कि कमिशन सिर्फ गुजरात के ही नहीं पूरे देश के दलितों को बेवकूफ बना रहा है. हमारा पूरे देश के दलितों से अनुरोध है कि आपके राज्य में कमिशन आने की तारीख अगर तय हो जाय तो तूरन्त कमिशन को एनसीपीसीआर के जैसा हीयरींग करने का अनुरोध करता हुआ मेइल, फेक्स, टेलीग्राम किजीए. और उसमें यह भी लिखिए की अगर कमिशन ऐसा हीयरींग करना नहीं चाहता तो उसे राज्य में आने की कोई जरूरत नहीं है. हम आपके राजदरबार में आकर आपको औचित्य देना नहीं चाहते. और दूसरा हम हमारे सभी सांसदो से भी अनुरोध करेंगे कि वे भी कमिशन को ऐसा हीयरींग करने का सुझाव देकर अपना अस्तित्व सार्थक करें, वर्ना वे भी इस्तीफा देकर अपने घर लौट सकते है. 

2 comments:

  1. जब दलित पर अत्याचार होता है, वह पुलीस स्टेशन जाता है, ज्यादातर मामलों में पुलीस एफआईआर दर्ज नहीं करेगी. यहां पर एससी कमिशन का या मानव अधिकार कमिशन की भूमिका शुरू होती है. ये कमिशन आप की फरियाद के आधार पर संबंधित पुलीस अधिकारी, डीवायएसपी को समन्स भेजकर सारे काग़ज़ात ले कर कमिशन के समक्ष उपस्थित रहेने का आदेश कर सकता है. एससी कमिशन में राजकीय नियुक्ति होने की वजह से उनका नजरीया पोलिटिकल होता है. उदाहरण के तौर पर एससी कमिशन का चेरमेन पुनीया मायावती को बदनाम करने मे ज्यादा इन्टेरेस्टेड है, मगर गुजरात आता है तो किसी को मालुम नहीं होता, कब आया और चला गया. या तो हमें एससी कमिशन में नोन-पोलिटीकल लोगों को रखने की, जैसा चाइल्ड कमिशन में होता है, माग करनी चाहिए, या पुनीया जैसे कांग्रेस के दलालों के पीछे पड जाना चाहिए. अगर हमारे कमिशन उनको दिया गया मेन्डेट अच्छी तरह निभाते है, तो हमें पीआइएल करने की जरूरत नहीं पडेगी

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