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Friday, August 2, 2013

मेरी संवेदनशीलता



मुझे लगता है कि अत्याचारों के मामले में हम कुछ ज्यादा संवेदनशील हो गये हैं. अगर आप को किसी ने गाली दी और आप के आत्मसम्मान को झटका लगाया तो उसे वहीं पर एक चाटा मारकर बात खत्म करें. और अगर आप निजी अपमानों का घूंट पीकर पूरे समुदाय के लिए लडना चाहते हैं तो वैसा करें. मगर अपने व्यक्तिगत अपमानों के लिए पूरे गांव में ढींढोरा पीटने की क्या ज़रूरत है? हमारे लोगों में ज्यादातर लोग तो ऐसे हैं जो अपने अपमान का रोना रोते रहते हैं रातदिन, मगर पूरे समुदाय के लिए लडना नहीं चाहते. ऐसे लोगों के लिए हमारे दिल में तनीक भी सहानूभूति नहीं होनी चाहिए.  

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