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Wednesday, February 27, 2013

थानगढ के दलित युवान सुरेश गोगीया की रिहाई



कल शाम छ बजे सुरेश गोगीया सुरेन्द्रनगर जेल से रिहा हुआ. कई दिनों की तपस्या के बाद अपने बेटे को जेल के बाहर देखकर सुरेश के पिता वालजीभाई की आंखे छलक गई. पिछले पांच महिने से वालजीभाई बेचैन थे. बिना वजह उनके बेटे को पुलीस पकडकर ले गई थी. तीन लडकों की मृत्यु के बाद थानगढ में हजारों दलितों का आनाजाना हुआ, शहीदों के नाम पर बेवजह तमाशा भी बहुत हुआ, बीजेपी-कांग्रेसवालों ने जमकर अपनी अपनी डफली बजाई, राजनीतिक दलों के कई बडे बडे नेता आए, मगर किसीने वालजीभाई के घर जाकर सुरेश के उन मासूम तीन बच्चों की और उनकी पत्नी की खबर तक नहीं ली थी. किसीने भी गरीबी और किस्मत के मारे सुरेश गोगीया के परिवार को एक पैसे की मदद करना उचित नहीं समजा. 

25 सप्टेम्बर 2012 के दिन हम जब थानगढ गये थे और चलो थान का कोल दिया था तब सुरेश गोगीया की पत्नी ने चीख चीखकर बताया था कि किस तरह उनके पति को बिना वजह पुलीस ले गई है. एक सीधा सादा आदमी जिसने अपनी पैंतीस साल की उम्र में किसी को चाटा तक नहीं मारा उसके पर कैसे कैसे भयानक इल्जाम थोपे गए हैं. तब हमने मन ही मन अपने आप से एक वादा किया था कि सुरेश गोगीया को न्याय दिलवाने के लिए हम कुछ करेंगे. 

कल सुबह से साथी महेश चौहाण तथा कनु सुमरा के साथ हम सुरेन्द्रनगर जाने के लिए निकले थे, तब दिल में एक ही उम्मीद थी कि आज किसी भी तरह शाम होने से पहले सुरेश गोगीया का उसके तडपते हुए परिवारजनों से मिलन हो जाय. अहमदाबाद से लीमडी एडिशनल सेशन्स जज की कचहर जाना, वहां से बेइल ओर्डर का रजिस्ट्रेशन करवाने सुरेन्द्रनगर जाना, फिर सुरेन्द्रनगर से वापस लीमडी कोर्ट में बेइल पर जज का दस्तखत करवाना, फिर उसे लेकर वापस सुरेन्द्रनगर सब जेल में सुरेश गोगीया की रिहाई करवाने जाना, पूरा दिन इस दौडधूप में निकल गया और सभी साथी तथा सुरेश के पिता थक गये, मगर शाम को जब सुरेश जेल से बाहर निकला, सभी की थकान दूर हो गई.

आदरणीय जज सोनिया गोकाणी ने सुरेश की रिहाई का ओर्डर लिखते वक्त उस बात पर गौर किया है कि 1. सुरेश पर सेक्शन 307 के तहत गंभीर आरोप है, 2. (जिन व्यक्तिओं को चोट पहुंचाने का उस पर आरोप है उन्हे) मामुली चोट आइ है ऐसा रेकोर्ड से पता चलता है, 3. (सुरेश) किसी चोक्कस व्यक्ति को चोट पहुंचाने की खास भुमिका निभाई नहीं है. यह सारी दलीलों को कोर्ट ने खारिज नहीं किया है और इसी परिप्रेक्ष्य में सुरेश को जमानत दी है. 

वरिष्ठ, विद्वान एडवोकेट मुकुल सिंहा, उनकी टीम और आदरणीय वालजीभाई पटेल के अमूल्य मार्गदर्शन तथा महेनत की बदौलत एक अच्छा कार्य संपन्न हुआ उसका हमें आनंद है. चार दिवारों के बीच बडे बडे भाषण करने से जो आनंद मिलता है उससे ज्यादा, अखबारों में हमारा नाम ढुंढते ढुंढते फिर वह जब किसी कोने में दिखता है तब मिलनेवाले उस बचकाना आनंद से कई गुना ज्यादा सुकुन हमें इस कार्य से मिला है. आनेवाले दिनों में इसी तरह हमारे सारे साथी मिलकर हमारे मजलूम लोगों के लिए ऐसे ही काम करते रहेंगे ऐसी उम्मीद बेकार नहीं है.

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