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Monday, February 11, 2013

गुजरात समाचार के तंत्री को थप्पड लगानेवाले भरत वाघेला की मृत्यु

ब्रह्माणीनगर के दलितों को वैकल्पिक व्यवस्था देने की लडाई.
 बाबासाहब के तैलचित्र के सानिंध्य में बैठे है भरत वाघेला 
विश्व केंसर दिन की पूर्व संध्या पर दलित आंदोलन के बहादुर, जिंदादिल, लडाकू, कर्मशील भरत वाघेला की मृत्यु हूई और वह भी केंसर का शिकार होकर वह अत्यंत ह्रदयविदारक घटना थी. ‘बोक्सर’ की उपाधि से प्रसिद्ध भरत वाघेला का परिचय 1981 के आरक्षण विरोधी दंगों के दौरान विशेषरूप से हुआ था, जब उनके जैसे चंद युवानों ने जान जोखिम में डालकर अहमदाबाद में आरक्षण विरोधियों से घिरी दलित बस्तियों की हिफाजत की थी. आज आरक्षण का फायदा उठानेवाले लोग इच्छा या अनिच्छा से समाज परिवर्तन की बात भूल गये हैं तब पुरानी और नई पीढियों को भरत वाघेला की याद दिलाने जैसी है.

भरत वाघेला का जन्म अहमदाबाद के खानपुर क्षेत्र के मिरासीवाड में हुआ था. उनके पिता मीन्टुभाई गांधीजी के अंतेवासी कीकाभाई और केशवजी वाघेला के परिवार से आते थे इसलिए सामाजिक निष्ठा और राजकीय सूझबूझ भरतभाई को विरासत में ही मिली थी, और वे बचपन से ही बाबा साहब और कार्ल मार्कस की उद्दाम विचारधारा के प्रति आकर्षित हुये थे. गुजरात में दलित पेंथर की स्थापना हुई तब अहमदाबाद में खानपुर क्षेत्र से विशाल ऐतिहासिक रेली निकली थी और बहेरामपुरा क्षेत्र में केलिको मिल के मैदान में जाकर सार्वजनिक सभा के रूप में परीवर्तित हो गई थी. मीरासीवाड के जोशीले युवा पेंथर भीखुभाई परमार की आगेवानी में भरत वाघेला सहित हजारों युवान जय भीम का नारा लगाते हुए जयप्रकाश चौक में इकठ्ठा हुए थे.

दहकती हुई आग में कूदने से इन्कार करे तो वह भरत वाघेला नहीं. जेतलपुर के दलित युवान शकरा को जब जिन्दा जलाया गया था उस वक्त भरत वाघेला अपने हाथ से शकरा की लाश उठाकर सिविल होस्पिटल के पोस्टमोर्टम रूम से बहार लाये थे. उनके साथ खानपुर तथा समूचे अहमदाबाद के हजारों युवान जुडे थे और जेतलपुर एवम् समग्र गुजरात को दलित आक्रोश का परिचय करवाया था.

1981 के बाद जाति निर्मूलन समिति की स्थापना में भरतभाई वाघेला ने नींव की भूमिका निभाई थी. और उनके साथ फदाली वास के दिवंगत धनसुख कंथारीया, राजेन्द्र जादव, नवनीत राठोड, मनुभाई परमार, रायखड के कनु सुमरा सहित असंख्य लोग जुडे थे और अहमदाबाद के विविध विस्तारों में ब्राह्मणवाद की बारहाखडी नामक ऐतिहासिक नूक्कड नाटक किया. 1985 में आरक्षण के पक्ष में दलित समाज को एकजूट करने में भरत वाघेला जैसे युवानों का अप्रतिम योगदान रहा है. अहमदाबाद में बम विस्फोट होते थे और जाति निर्मूलन के युवा रंगकर्मी परा विस्तारों में नूक्कड नाटक करते थे और हजारों लोग उन्हे देखने के लिये इकठ्ठा होते थे.

कलोल में आरक्षण के समर्थन में रेली निकली उसके दो दिन पहले जाति निर्मूलन समिति के युवा रंगकर्मी पहुंच गये थे और कलोल के विविध विस्तारों में नूक्कड नाटक करके लोगों को इक्ठ्ठा किया था. रेली निकली तब रास्ते में कुछ शरारती लोगों ने पथराव किया और लोग तीतर बीतर होने लगे, तब जाति निर्मूलन के कार्यकरों ने रास्ते के बीच में खडे होकर, पथराव झेलकर, रेली को गंतव्य स्थान पर पंहुचाया. कटोकटी के ऐसे तमाम मौकों पर भरत वाघेला चट्टान की तरह खडे रहते थे.

1981 और 1985 में गुजरात के अखबारों ने विकृत, गलत और एक तरफी समाचारों की बौछार करके  दलित विरोधी मानसिकता का माहौल पैदा करने में बहुत बडी भूमिका निभाई थी. प्रेस काउन्सिल ऑफ इंडिया ने वरिष्ठ पत्रकार बी. जी. वर्गीझ के नेतृत्व में नामांकित पत्रकारों की जांच समिति गुजरात भेजी थी और उन्होने तलस्पर्शी छानबीन के बाद क्रुकेड मीरर (कपटी शीशा) नामक रिपोर्ट जारी किया, जिसमें गुजरात समाचार, संदेश की जातिवादी, दलित विरोधी मानसिकता उजागर हूई थी. कुछ लोगों को इन तमाम तथ्यों के बारे में पता है, परन्तु बहुत कम लोगों को यह बात पता है कि 1985 में गुजरात समाचार के अहमदाबाद-स्थित प्रेस के बाहर ही भरत वाघेला ने तंत्री शांतिलाल शाह के गाल पर एक ज़ोरदार थप्पड मारकर जातिवादी तंत्री की शान ठिकाने ला दी थी.

मात्र पांच की फूट की उंचाई वाले भरत वाघेला के भीतर उर्जा का अप्रतीम स्त्रोत था. जिन्हो ने उनके लोखंडी पंजे का स्वाद एक बार भी चखा हो वह उन्हे जिंदगीभर नहीं भूलते थे. आज से तीस साल पहले आधे दर्जन मवालियों का मुकाबला करके सिर्फ एक ही मुक्के में उन्हें धूल चटानेवाले भरत वाघेला को जिसने भी देखा है वे लोग आज भी इस दिलेर युवान को याद करते है और कहते है कि जातिवादी-कोमवादी मवालियों से दलित समाज का रक्षण करनेवाले भरत वाघेला जैसे वीरों .को हम भूल नहीं सकते.

गुजरात के गांव में कहीं भी अत्याचार होते थे तो  दलितों की मदद के लिये भरत वाघेला हमेंशा तत्पर रहते थे और अपनी कम आमदनी भी खत्म हो  जाये तो भी उसकी परवाह नहीं करते थे. जामनगर जिला का कालावाड तहसील का टोडा गांव हो या बनासकांठा का सांबरडा गांव हो, भरत वाघेला यह लेखक के साथ जरूर वहां जाते थे और लोगों को जुर्म के खिलाफ लडने का हौंसला देते थे. 1989 में अहमदाबाद में टोडा-सांबरडा की रेली गठित करने में  उन्होने अहम भूमिका निभाई थी और बारिश में भी उन्होने पत्रिकाएं बांटी थी.

1989 में अहमदाबाद के ओढव विस्तार में आये  ब्रह्माणीनगर में म्युनिसिपल कोर्पोरेशन ने बुलडोझर चला दिया और बारिश के दिनों में दो सौ परिवारों के सर से छत चली गई. तब दाणापीठ के पास आई कोर्पोरेशन की कचहरी के कंपाउन्ड में हिजरत करके धरना पर बैठे दलितों को एक महिना तक भरत वाघेला और रायखड के कनु सुमरा के नेतृत्व में दलित युवानों ने रास्ते पर खाना पकाकर खिलाया, आंदोलन किया और घरविहीन दलितों को वैकल्पिक व्यवस्था देने के लिये मेयर गोपालदास सोलंकी को बाध्य किया.

1985 में आरक्षण के विरोध में समग्र गुजरात बंध का कोल दिया गया था. जाति निर्मूलन के मित्रों ने लाल दरवाज में धरना किया था. पुलिस ने उनकी धरपकड करके दो दिन तक गायकवाड की हवेली के लोकअप में रखा. तब भरत वाघेला हमारे साथ शूरवीर योद्धा की तरह खडे रहे थे. कुछ किये बिना ही आज लोग समाज के लिये बहुत कुछ करने का ढोंग कर रहे हैं उस वक्त भरत वाघेला जैसे समाज के लिए मर मीटनेवाले युवानों की बहुत कमी महसूस होगी. टीकेश मकवाणा, प्रो. बाबुभाई कातिरा (कोडीनार) के अकाल स्वर्गवास होने के बाद भरत वाघेला की कम उम्र में दु:खद मृत्यु से दलित समाज रांक बना है. उनके जीवन के प्रेरणादायी तत्व हमें हमेंशा समाज के उत्थान के लिये कार्य करने के लिये प्रेरित करते रहेंगे.

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