जुनागढ में दो गुट के बीच
तू तू मैं मैं हो रही थी. उस वक्त दरबार जाति का एक पीएसआई वहां से जा रहा था. अगर
वे दोनों गुट सवर्णों के होते तो पीएसआई ने दोनों गुटों को प्यार से समजाया होता.
मगर, उसमें एक गुट दलितों का था. पीएसआई ने उनमें से एक दलित की जाति पूछी. उसने
जब बताया कि वह दलित है, तब पीएसआई ने, "साले तुम थानगढवाले" ऐसा कहकर गाली दी. दलित युवान ने क्या किया उसका बयान मैं
यहा नहीं लिखुंगा, मगर उसने वही किया जो डॉ. अंबेडकर का एक बेटा, एक स्वाभिमानी
दलित करता है. नतीजा ये आया कि पीएसआई ने उसे गोली मारी. ये है थानगढ का इम्पेक्ट.
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