26 जुन 2012. आज अहमदाबाद की मेट्रोपोलीटन मेजीस्ट्रेट की कोर्ट में रखेवाल का तंत्री तरुण शेठ हाजीर हुआ. अब उसके खिलाफ सेसन्स कोर्ट में केस कमीट हो गया है. तरुण शेठ ने उसके दैनिक रखेवाल में जातिवादी मानसिकता का घृणास्पद प्रदर्शन किया था, जिसमें लिखा था,
"प्राचीन काल में माता-पिता बच्चों को अच्छी सौबत मिले इस लिये उन्हे
साधु-संतो के प्रवचनों को सुनने के लिये भेजते थे। बच्चे पढने के लिये तपोवन में
जाते थे। जो बच्चे तपोवन में पढने के लिये नहीं जा सकते थे, वे गांव की पाठशाला में पढते थे। वहां उन्हे शिक्षण
के साथ साथ सदाचार का पाठ भी पढाया जाता था। आज के बच्चे स्कूल जाते है। वहा ‘नीच वर्ण' के बच्चों के संपर्क में आते है और खराब रीतभात सीखते है। आज की
स्कूलो में 'खानदान कुल' के बच्चों के साथ
खराब संस्कारवाले बच्चे भी आते है। और उनका रंग खानदान बच्चों को लगता ही है। पहले
की पाठशालाओ में शिक्षक के रूप में मात्र 'ब्राह्मण' की पसंदगी की जाती थी, अब
तो 'पिछडे वर्ग' के लोग भी ‘आरक्षण' का लाभ लेकर शिक्षक
बन जाते है। ऐसे 'शिक्षक' बच्चों को अच्छे
संस्कार नही दे सकते।" (रखेवाल दैनिक, गुजरात,
ता. 19-12-2008).
यह पेरेग्राफ गुजरात के प्रमुख अखबारों में से एक गुजरात समाचार के
कोलमिस्ट संजय वोरा (उर्फ सुपार्श्व महेता) के आर्टिकल का है. यह आर्टिकल गुजरात
के अन्य जानेमाने अखबार रखेवाल में छपा था, जिसके तंत्री तरुण शेठ के खिलाफ हमने नागरिक हक्क संरक्षण
अधिनियम 1955 की धारा 7/1/सी, अनुसूचित जाति, जनजाति
(अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 की धारा 3(1)(9), 3(1)(10)
तथा इन्डीयन पीनल कोड की धारा-153 ए, धारा 500, 505(1)(ग) के तहत ता.17-9-2009 को एफआईआर दर्ज करवाई थी. अहमदाबाद की मेट्रोपोलिटन
मेजिस्ट्रेट की कोर्ट में केस अभी चल रहा है और 'रखेवाल' का तंत्री कम से कम
एक दिन के लिए साबरमती जेल में जा चूका है. एफआईआर क्वॉश करने की तंत्री की पीटीशन
गुजरात हाइकोर्ट ने खारिज कर दी है. गुजरात के मीडीया जगत में यह पहली घटना है.
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