वैसे गुजरात की
इन दो घटनाओं का एक दूसरे से प्रत्यक्ष संबंध नहीं हैं, फिर भी हम दोनों घटनाओं को एक साथ पढना चाहते हैं. एक घटना में गुजरात के मोरारी बापु को इरान सरकार की तरफ से
निमंत्रण मीला है. बापु करबला के मैदान में रामकथा कर के सत्य, प्रेम और करुणा का
संदेश फैलाना चाहते है. दूसरी घटना में गुजरात के राजकोट जिल्ला के थोराला टाउन
में दलित की मुसलमानों द्वारा हत्या के बाद दलितों ने विरोध प्रदर्शन किया है.
आप देखिये, दो
हजार साल पुराने आर्य-अनार्य के संघर्ष का एक महाकाव्य है, जिसके रचयिता वाल्मीकि
है, जो उस युग की सारी सच्चाईयां को बेझिझक दिखातें हैं, जैसे कि उस जमाने के 'ब्रह्मेश्वर' इन्द्र का ऋषि
पत्नियों पर बलात्कार, नियोगप्रथा, वालीवध, शंबुकवध, सीता का अग्निप्रवेश....
मुरारीभाई का राम समाजवादी है, लोकतांत्रिक है. वह वन में जाता है, वनवासी सबरी के
बोर खाता है, कितना प्यार है राम लल्ला को वनवासियों के लिए, देखो. मुरारी की
रामकथा का राम सेक्युलर भी है. मुरारी अच्छे सेल्समेन है. गुजरात के प्रमुख
गांधीवादी लोग मुरारी के दिवाने है, क्योंकि मुरारी और गांधीवादी दोनों को राम का
नया स्वरूप, दलितो-आदिवासियों का स्नेही राम, बहुत भाता है. उनके पीछे पीछे मोदी
और असिमानंद का 'राम' चुपके से आता है, और डांग के आदिवासियों को मुसलमानों-ख्रिस्तियों
के खिलाफ उक्साता है. मोदी गांधीनगर में महात्मा मंदिर बनाते हैं. उसमें मोरारीभाई
रामकथा करते है. वाह, क्या नजारा है !!
कुछ ही दिनों में
आप ऐसा भी सुनेंगे कि थोराला में कोमी सदभाव के लिए मोरारीभाई की रामकथा का आयोजन !! स्टेज पर बैठे है मुरारीभाई के साथ हमारे आदरणीय मौलानासाब
और बीजेपी के दलित नेतागण. राजकोट में चौदह अप्रैल को बाबासाहब की प्रतिमा के खंडन
की अफवाह फैलाकर दलित-मुसलमानों के बीच दंगा करवाने की साजिश का प्रथम अद्याय पूरा
हुआ, अब दूसरा अद्याय थोराला में लिखेंगे सेफ्रन के शुभचिंतक !!
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