देश के अन्य राज्यों में
क्या स्थिति है, यह हमें पता नहीं, मगर गुजरात में ग्राम पंचायतों की सामाजिक
न्याय समितिओं को बाकायदा मृत पशुओं का निकाल करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है.
गुजरात ग्राम पंचायत सामाजिक न्याय समिति (रचना और कार्य) नियमो, 1995 में सामाजिक
न्याय समिति की रचना तथा कार्यों संबंधित प्रावधान है, जिसमें स्पष्टरूप से लिखा
है, कि सामाजिक न्याय समिति "मुर्दों का व्यवस्थित निकाल
करने की कामगीरी पर ध्यान रखेगी और लावारिस मुर्दों और शवों के निकाल के लिये साधन
जुटायेगी और उन शवों के निकाल के लिये स्थान तय करेगी."
सामाजिक न्याय समिति में
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का एक-एक सदस्य होता है, उसके अलावा उसमें
वाल्मीकि समुदाय का एक सदस्य तथा अनुसूचित जाति की एक महिला सदस्य को भी सामिल
किया जाता है. इस समिति का काम है गांव में दलितों को सामाजिक न्याय देना. गुजरात
में सवर्णों ने सामाजिक न्याय की व्याख्या ही बदल डाली है, इस बात का यह प्रावधान
सबसे बडा प्रमाण है. यह कानून कांग्रेस के शासन में बना था, बीजेपी को उसे बदलने
की कोई आवश्यकता लगती नहीं. दलितों के बेवकूफ राजकीय प्रतिनिधि कांग्रेस और बीजेपी
का पट्टा गले में लगाए फिरते हैं, मगर इसके बारे में सोचते तक नहीं. गाय हिन्दुओं की माता है, मगर दूध-मख्खन देती है तब तक ही माता है, जब मर जाती है, तब हिन्दु अपनी माता की अंत्येष्टि का अत्यंत पवित्र कृत्य वे जिन्हे अस्पृश्य मानते हैं उन्ही लोगों से करवाते हैं.
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