कुछ नारीवादियां शादी के
बाद अपने नाम के पीछे दो सरनेम लीखती है. जैसे कि काजल ओझा वैध. किरण त्रिवेदी
भट्ट. अरे भाई, बात बात में पेट्रीआर्की पर चिल्लाते हो, पितृसत्ताक समाज को
गालियां देते हो, हम जब दलित की बात करते हैं तो हमें भी नारीवाद के दंडे से पीटते
हो और कहते हो, आप के दलित समाज में स्त्रियां बहुत गुलाम है. फिर ये दो-दो सरनेम
क्यों? बाप के घर थे तब बाप की जाति का निर्देश करती सरनेम का टीका लगाए रखा और अब
शादी के बाद पति की जाति का निर्देश करती सरनेम का दूसरा टीका लगा दिया. आप से तो
अच्छी थी कपडा मीलों में काम करनेवाली हमारी वे अनपढ़ दलित माताएं, जो अपने नाम के
पीछे अपनी माताओं का नाम लिखवाती थी. उन्हो ने सीमोन द बुअर की किताब सेकन्ड सेक्स पढी नहीं थी, मगर रोज सबेरे अपने पति की साइकिल के पीछे बैठकर काम पर जाया करती थी.
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