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Tuesday, October 22, 2013

मैं भंगी हूं



 "कुछ लोगों ने कायरता और अज्ञानतावश कुछ कवियों, साधुओं तथा भक्तों को मेरा धर्मगुरु बनाकर मेरे सिर पर बिठा दियाहै. देश के एक भाग में कुछ लोगों ने वाल्मीकि को मेरा धर्मगुरु कहा, कुछ ने सुपच सुदर्शन को अपना धर्मगुरु कहना शुरु लिया है. वे उनके नाम पर जयंतियां मनाते है, जलसे-जुलूस निकालते है. परंतु मैं समझता हूं, उसमें राजनीति, अज्ञानता और कायरता के सिवा कुछ नहीं. वाल्मीकि भंगी नहीं था, चांडाल भी नहीं था. शुद्र या अतिशुद्र भी नहीं था. उसका सबसे महान कार्य था रामाणय तथा ब्राह्मणीदर्शन की प्रसिद्ध पुस्तक योगवशिष्ठ की रचना करना."

"रामायण इतिहास नहीं, काल्पनिक कहानी है. राम एक क्षत्री राजा था.... वर्णव्यवस्था का संरक्षक, आर्य सभ्यता को प्रोत्साहन देने वाला. ब्राह्मण धर्म का प्रचार किया.... यह पुस्तक जातिवाद और वर्ण व्यवस्था को आदर्श बनाती है. इसी की शिक्षा में भारत की गुलामी तथा भारतीय समाज के पतन की बूनियादें रखी गई है."

"रही वाल्मीकि के कोमल ह्रदय आदि कवि होने की बात. तो क्या सचमुच वह उतने कोमल ह्रदय के थे कि एक पक्षी का दु:ख उनसे देखा ना गया. परंतु उनकी ह्रदय की कोमलता उस समय कहां गई थी जब शंबूक का वध हूआ था...."

पेइज – 102, मैं भंगी हूं. लेखक भगवानदास. प्राप्ति स्थान - गौतम बुक सेन्टर, सी-263-ए, चन्दन सदन, हरदेवपुरी, शाहदरा, दिल्ली – 110093.

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