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Thursday, December 6, 2012

दलितों और पीछडों के प्रति स्वामिनारायण संप्रदाय का रवैया


आज से 43 साल पहले गुजरात के 'संदेश' दैनिक में स्वामिनारायण संप्रदाय के एक जानेमाने साधु योगी महाराज का एक निवेदन प्रगट हुआ था. यह संप्रदाय और उनके साधुओं के मन में दलितों तथा पीछडों के लिए कैसी दुर्भावना थी, इसकी अनुभूति हमें यह समाचार पढकर होती है.


संदेश
मंगलवार ता.13 मई 1969
भगवान स्वामीनारायण ने ढेड-वाघरी सबको अपनाया परन्तु उन्हें अपने साथे बैठकर भोजन करने के लिये नहीं कहा.
वडोदरा ता.11
श्री अक्षरपुरुषोतम अटलादरा के पु.श्री योगीजी महाराज ने आज पत्रकारों को बताया कि वर्णाश्रम अहिंसा और ब्रम्हाचर्य का सत्य  युगो से चलता आ रहा है और इस युग में भी होना चाहिये उसके बिना मनृष्यों को मोक्ष नहीं मिल सकता.
श्रीजी महाराज ने वर्णाश्रम को स्वीकार किया है. उन्होने वाघरी, ढेडा वगेरे गरीबों का हाथ पकड़कर उनसे कुटेव और गलत धंधे को छुड़वाकर संस्कारी बनाया है. श्रीजी महाराज ने राजाओं और शेठियों के लिये नही परन्तु गरीबों के बेली भगवान है ऐसा मानकर सबको अपनाया है उसके बावजुद भी उनके साथ बैठ़कर खाने की बात नही कही.
श्रीजी योगीजी महाराज का 78 वां जन्मदिन मनाने के लिये श्री अक्षरपुरुषोतम सत्संग मंडल द्वारा 4 दिन का एक युवक महोत्सव का मनाया गया, श्री. योगीजी ने बच्चों और युवको में सत्संग भावना बढ़े, संस्कारो का सिंचन हो और सेवाभावना जागृत हो उस तरह काम करने का अनुरोध किया.
पत्रकारों के प्रश्नो का उतर देते हुए उन्होने कहा कि सांकरवा में श्री. अक्षरपुरुषोतम के नाम से चलनेवाली प्रवृति में उनका कोई हाथ नही है.
इस प्रंसग पर उपस्थित मुंबई के श्री. हर्षदभाई दवे कहा कि  "वचनामृत" में स्त्रीओं और साधुओं की मर्यादा बताई गयी है, उससे उल्टा बर्ताव किया जा रहा है, जिसके कारण वो हमसे अलग है
श्री. दवे ने आगे बताया कि, वडताल की गदी के बारे में हमारा कोई झगड़ा या तकरार नहीं है. वहां के साधु यहां आते हैं और हम भी वहां जाते है.



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