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Saturday, November 10, 2012

गोगीया - थानगढ का असली हीरो, जो अभी भी जेल में है


इस तसवीर में एक आदमी जमीन पर गिरा है, या उसे गिरा दिया गया है और उसके चारों और भेडियों की तरह पुलीसवाले खडे हैं. वह है गोगीया. थानगढ का दलित युवान, जो अभी तक जेल में है. गोगीया पर पुलीस की कार्बाइन गन छीनने का गंभीर आरोप लगाया गया है. गोगीया को अभी तक जमानत मीली नहीं है.

23 सप्टेम्बर, 2012 के दिन जब पुलीस ऑटोमेटीक कार्बाइन से गोलियों की बौछार कर रही थी. सामने निहत्थे दलितों का टोला खडा था. न अश्रुवायु, ना वोटर केनन. ना कोई चेतावनी, ना कोई रबर बुलेट. दलित बच्चों के सीने में, गले में, पेट में गोलियां चला रही थी पुलीस. तब कहते है कि नजर के सामने बच्चों को मरते हुए देखकर गोगीया का दिल कांप उठा था. जिंदगी में कभी जिस आदमी ने एक चींटी तक नहीं मारी, ऐसा सीधा सादा इन्सान गोगीया आधा किलोमीटर का फांसला दौडकर पुलीस के नजदीक गया और कार्बाइन से गोलियां चालनेवाले पुलीस कर्मी को रोकने की कोशिश की. पुलीस ने उसे मारा, पीटा, चारों और से घेरकर जानवरों सा सलुक किया. यह तसवीर सारी कहानी बता रही है. और उसमें जो आदमी हाथ में काला जेकेट लेकर खडा है, वह है डीएसपी हरिकृष्ण पटेल. तेइस तारीख दोपहर को गोलियां चलाने का आदेश उसने दिया था.

मोदी सरकार ने पी के जाडेजा और तीन पुलीस कर्मियों के खिलाफ 302 सेक्शन दाखिल की है, मगर हरिकृष्ण पटेल के खिलाफ अभी तक कोई कारवाई नहीं हुई है. जाडेजा से भी ज्यादा दोषी हरिकृष्ण पटेल है. थानगढ में एक लाख से भी ज्यादा लोग इकठ्ठा होने के बाद भी अभी तक दलितों के हत्यारों को सरकार पकडने के लिए तैयार नहीं है. क्योंकि कांग्रेस के दलाल इस आंदोलन को खत्म करने पर तूले है. 2 अक्तुबर के दिन पूरे गुजरात से आए दलितों ने थानगढ में जो मदद की, उसी पैसों का उपयोग करके कांग्रेस के कुछ दलाल अभी अभी दिल्ली में अपनी टीकट पक्की करने गये थे और लोगों को कहा कि हम अत्याचारों के खिलाफ वकालत करने गए थे.

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