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Friday, August 2, 2013

सर्व शिक्षा अभियान के नाम पर मची है लूंट

पीछले छह महिने से गुजरात सरकार के सर्व शिक्षा अभियान की वेबसाइट से हमारी टीम ने जो भी डेटा निकाला उसका पृथक्करण करने के बाद कुछ नतीज़े सामने आए:

सर्व शिक्षा अभियान दलित, आदिवासी, मुसलमान, पीछडी जातियों के ड्रोप आउट बच्चों कों फिर से स्कुल में दाखिल करने की योजना है.

इस स्कीम के लिए सरकार अरबों रूपया खर्च करती है. जैसे कि गुजरात की 2012-13 की योजना 13 अरब की हैं. 

इस स्कीम में 65 प्रतिशत हिस्सा केन्द्र सरकार देती है.

गुजरात में अकेले अहमदाबाद में 27,000 से ज्यादा छात्र फर्जी है. (और ऐसा सिर्फ हम नहीं कहते, अहमदाबाद म्युनिसिपल स्कुल बोर्ड का चेरमेन खुद कहता है.)

हमने यह भी देखा कि न सिर्फ छात्र फर्जी है, अभियान के अतर्गत खुले स्पेशियल ट्रेनींग प्रोग्राम के केन्द्र भी फर्जी है. अकेले अहमदाबाद में ऐसे केन्द्रों की संख्या 212 (36.61 फीसदी) है.

इस ड्रोप आउट बच्चों को पढ़ानेवाले बालमित्रों की नियुक्ति के लिए कोई तरह का इन्टर्व्यू नहीं लिया जाता. वास्तव में यह बीजेपी की स्थानिक कार्यकर्ताओं का भरणपोषण करने की मुहिम है. इन बालमित्रों को मालुम भी नहीं होता कि इन के पास कितने ड्रोपआउट बच्चें हैं.

हम ऐसा मानकर चले थे कि ड्रोपआउट बच्चों कि लिस्ट का इस्तेमाल दूसरे साल भी होगा. इसलिए हमने अहमदाबाद और कुछ जीलों की सूचियों की प्रिन्टआउट्स निकाल ली थी. अब हमने देखा कि अगले साल की लिस्ट कुछ मामुली परिवर्तनों के साथ इस साल भी इस्तेमाल की गई हैं.

हमने गांधीनगर की कचहरी को हमारा रीपोर्ट भेजा. उन्हों ने सात दिन में रीपोर्ट देने के लिए अहमदाबाद के शासनाधिकारी को पत्र भेजा. लेकिन अब तक वह रीपोर्ट हमें दिया किया गया नहीं है.

ड्रोपआउट सरवे फार्म में जानबूझकर बच्चों का ड्रोपआउट वर्ष, माह, कक्षा की जानकारी टाली जाती है, ताकि दूसरे साल इसका इस्तेमाल हो सके. 

मीडीया के कुछ वृत्तांत हमारे रीसर्च को पुष्टि दे रहे हैं. जैसे कि सात दिन तक गांधीनगर की सर्व शिक्षा अभियान की कचहरी में किताबें जलाई गई.

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