अस्पृश्यो के संतानो को सार्वजनिक स्कूल में प्रवेश देना चाहिये या नहीं इस प्रश्न के विषय में अभिप्राय व्यक्त करते हुए श्रीमती ऐनी बेसन्ट कहती है, " अभी तो तीव्र गंध देनेवाला भोजन तथा दारु से पीढी दर पीढी के आदी उनके शरीर दुर्गंधभरे और गंदे है। विशुध्द आहार से पोषित और उमदा, निजी स्वच्छता की आदतों की विरासत में तालीम पानेवाले बच्चों के साथ स्कूल की एक कक्षा में अंत्यत निकट बैठने योग्य और विशुध्द और जीवनशैली से सुसभ्य होने में उन्हे कई साल लगेंगे। (एनी बेसन्ट)
यह पेरेग्राफ गुजरात के प्रमुख अखबारों में से एक
गुजरात समाचार के कोलमिस्ट संजय वोरा (उर्फ सुपार्श्व महेता) के आर्टिकल का है. यह
आर्टिकल गुजरात के अन्य जानेमाने अखबार रखेवाल में छपा था, जिसके तंत्री तरुण शेठ
के खिलाफ हमने नागरिक
हक्क संरक्षण अधिनियम 1955 की धारा 7/1/सी, अनुसूचित जाति, जनजाति (अत्याचार
निवारण) अधिनियम 1989 की धारा 3(1)(9), 3(1)(10) तथा इन्डीयन पीनल कोड की धारा-153
ए, धारा 500, 505(1)(ग) के तहत ता.17-9-2009 को एफआईआर दर्ज करवाई थी. अहमदाबाद की मेट्रोपोलिटन
मेजिस्ट्रेट की कोर्ट में केस अभी चल रहा है और 'रखेवाल' का तंत्री कम से कम एक दिन के लिए साबरमती जेल
में जा चूका है. एफआईआर क्वॉश करने की तंत्री की पीटीशन गुजरात हाइकोर्ट ने खारिज
कर दी है. गुजरात के मीडीया जगत में यह पहली घटना है.
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