रूपा अभी अमदावाद की सीवील अस्पताल में है |
राजु सोलंकी
राजकोट के थोराला विस्तार में 25 जून को एक दलित युवान की हत्या के बाद दलितों
पर हुए पुलिस दमन अखबारों में नहीं छपा. सोलह साल की रूपा अपने घर की उपरी मंजिला पर खाना पका रही थी. पड़ोशी के घर के दरवाजे
में छेद करके अंदर दाखिल हुई पुलिस छत से रूपा के घर में आई और उस पर लाठियों की
बौछार कर दी. डर के मारे रूपा सीडी की तरफ भागी तो उसकी पीठ पर लात मारी, सीडी से गिरने से उसकी कमर तूट गई. रूपा का राजकोट की सीवील अस्पताल में इलाज नहीं हुआ,
पुलिस के डर से केस फाईल में कमर टूटने का कारण भी नहीं लिखा गया।
30 जून 12 को हम राजकोट गये. रूपा के घर के आगे ही हम बैठे थे. रूपा के पिताजी
को फरियाद करने के लिये समझाया. "मैंने
सुबह अपने घर को 30,000 में गीरवी रख दिया है. मैं अपनी लड़की को प्राईवेट होस्पीटल
में भर्ती करूंगा, फरियाद करूंगा तो पुलिसवालों मेरी हड्डियां तोड देंगे, मैं घर
को ताला मार दूंगा," ये
थे रूपा के पिता सवजीभाई के शब्द. "हम आपके ही समाज के हैं,
इसलिये आपके प्रति भावना से प्रेरित होकर आये हैं, रूपा का ईलाज यहां ना हो सके तो
अमदावाद ले आना," इससे ज्यादा सवजीकाका को हम कहे नहीं सके. दूसरे दिन
बारह बजे रूपा के रिश्तेदार उसे अमदावाद लाये. उनके साथ जाकर रूपा को सीवील में
भर्ती कराने के बाद लगातार हम उसके संर्पक में है. अभी उसे स्पाईन विभाग में भर्ती
किया गया है. रूपा का ईलाज अच्छी तरह से हो उसके लिये हम सब कृतनिश्चयी है, परन्तु
ये तो सचमुच आसमान फटा है. रूपा के घर के सामने रहते आंबेडकरनगर के ही 9 वर्षीय करण को अब ये भी याद नहीं होगा कि उसने
कितनी बार जाहिर में अपनी पेन्ट उतारी होगी और लोगों को उसके गुप्तांग पर लगी चोट बताई
होगी. "पुलिस ने मुझे पेशाब करने की जगह पर लात मारी," ऐसा कहते कहते वह अपनी माता से जिस तरह चीपक जाता है, उस दृश्य को देखकर ही
पता चला जाता है कि उस पर क्या बीत रही होगी.
राजकोट मुलाकात के दौरान ही अनुसूचित जाति आयोग के राजु परमार लालबत्तीवाली
गाडी में वहां आये थे. हमने उनसे फोन पर बात की. जब उन्हे करन के बारे में जानकारी
दी तब उन्होने उसे कलेक्टर कचहरी पर लाने के लिये कहा. करन ने कलेक्टर कचहरी
में सबके सामने पेन्ट उतारी. इस बार माता के आंचल से लिपटा नहीं, परन्तु मक्कमता से वहां
खडा रहा. कलेक्टर त्रीवेदी, एसपी डॉ. राव के चहेरे पर शर्मिदगी दिखाई दे रही थी. आयोग
ने कलेक्टर को एक्शन टेकन रिपोर्ट तैयार करने का आदेश दिया और पांच बजे की फ्लाइट
पकडने के लिये फटाफट वहां से रवाना हुआ। एक मासुम बच्चा अपनी पेन्ट उतार रहा था, मगर उससे किसी को कोई फर्क नहीं पड रहा था, क्योंकि पूरा प्रशासन यहां कब से अपनी पेन्ट उतारकर बैठ गया है.
हम वापस आंबेडकरनगर आये. अभी ढेर सारी वितककथाएं हमारी राह देख रही थी. 42
वर्षीय प्रवीण नकुम को घर में घुसकर मारा, तीन दिन तक गेरकानून हिरासत में रखा, बाद
में छोड दिया. उन्हें इतने भयंकर रूप से मारा था कि पांच दिन बाद हम जब उन्हें मिले
उस वक्त भी उनके घाव नहीं भरे थे. उनके लड़के का बाल खींचकर घसीटती हुई पुलिस चौराहे
तक ले गई और उसे भी जेल में बंद कर दिया. प्रवीणभाई की पत्नी के कान में पहेने हुए
इयरिंग को इतनी जोर से पुलीस ने खिंचा कि वहां खरोच पड गई. उसकी खरोंच के निशान अभी
भी उनके चहेरे पर मौजूद है. पांव
के तलवे पर लक़डियो से इतना प्रहार किया गया कि तलवे सूज गए थे और सूजन काफी दिनों
तक रही. सिर्फ लगोंछा पहनकर बैठे हुण प्रवीणभाई छूटक मजूरी करते है.
जन्म से टेढी गर्दन के साथ जन्मी भावना को लेकर उसके
माता पिता हमारे पास लाये. "मेरी
बच्ची को भी उन्होंने नहीं छोडा, धडाधड लाठियां बरसाने लगे उस पर," भावना की माता रोआसा चहेरा
करते हुए कह रही थी. करन के बडे भाई मुकेश ने भी पट्टी किये पांव को दिखाते हुए
कहा कि पुलिस ने उसे भी लाठी से मारा था. "पुलिस दीवार कुदकर हमारे घर में
घुसी थी. मेरे दूसरे दो बडे बेटों को भी पकडकर ले गई है. मैं बहुत चिल्लाई, पर
मेरी सुने कौन?"
जयाबहेन की बात बिलकुल सच थी. सूने कौन?
25 जून को गुणवंत की हत्या हुई थी. यह "गुणा" थोराला के दलितों का हीरो था. दलितों में हर जगह ऐसे गुणाएं है. जेतलपुर का
शकरा भी ऐसा ही बहादुर था। पंचायत की कचहरी में बंद करके पेटलों ने उसे युंही ही नहीं
जलाया था. धाडा के रमेश को दरबारों ने गांव के बीचोबीच ट्रेक्टर के नीचे कुचल
दिया. रमेश ने दरबारों के आंखो में आंखे डालने की हिम्मत की थी। हैदराबाद से
मिलिट्री की तालीम लेकर घर वापस आये सायला तालुका के कराडी गांव के दलित युवान ने
उसकी सात पीढियों में शायद पहेलीबार गांव के चोक में जुआ खेलते दरबारों को डांटने
की "गुस्ताखी" की और उसके सीने को गोलियों से छलनी कर दिया गया.
गुणा एन्टी-सोशियल था, बुटलेगर था. "परन्तु हमारे लिये दीवार
जैसा था. गुणा जिंदा था, तब तक थोराला में पुलिस घुस नहीं सकती थी," थोराला के दलित अगर ऐसा कहते है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है.
बदनसीबी यह है कि गुणा को चाकू मारनेवाला हाथ इमरान का है. इमरान हितेश मुंधवा
जैसे जम़ीन दलालों का प्यादा है यह सत्य थोराला के दलित अच्छी तरह जानते हैं, मगर
अभी तो उनका क्रोध एक गरीब मुसलमान का घर जलाने में परीवर्तीत हुआ है. गुणा की
स्मशानयात्रा में समूचे जीला के दलित आए थे और अग्निदाह के बाद सभी अस्सी फुट के
रोड पर इकठ्ठा हुए थे. "उनके पास प्राणघातक
हथियार थे और बार बार समजाने पर भी नहीं माने थे और गैरकानूनी मंडली रचकर पब्लीक
प्रोपर्टी को नुकसान पहुंचाने के गंभीर प्रयास किए थे," ऐसे आरोप पुलीसने एफआईआर में दर्ज करके 54 लोगों को हिरासत में लिया और बाद
में हुए पुलीस दमन को न्यायोचित ठहराने का प्रयास किया है.
पीछले कुछ सालों से राजकोट दलित अत्याचार का एपीसेन्टर बना है. हर साल चौदह
अप्रैल को कुछ न कुछ बहाना निकालकर दलितों को पीटने की पेटर्न पुलीस ने बना ली है.
2011 में बाबासाहब की प्रतिमा का मुसलमानों द्वारा खंडन होने की अफवाह फैलाई गई
थी, उसमें राजकोट बीजेपी के लघुमती सेल के अद्यक्ष कादर सलोट ने मुख्य भूमिका
निभाई थी ऐसा सूत्रो ने बताया था. "हमने तूम्हारे बाप का
पूतला नहीं तोडा," ऐसा बोलकर मालवीयानगर पुलीस स्टेशन के "दरबार" पुलीसवालों ने महात्मा गांधी छात्रावास के दलित छात्रों को बेरहेमी से पीटा
था. उस दमन को हमने "मेरे बाप का पुतला" नाम की दस्तावेजी फिल्म में उजागर किया है. थोराला इसी दमन-चक्र की एक और कडी
है.
थोराला
के समाचार को द्विगुणित करती हूई एक और घटना हमारे सामने हूई. डबल ग्रेज्युएट,
सफाई कर्मी अशोक चावडा ने राजकोट के सीटी इजनेरी विभाग के अफसरों के तथाकथित
मानसिक त्रास से व्यथित होकर अमदावाद की होटल में आकर आत्महत्या की. अशोक चावडा की
स्युसाइड नोट होटल के उस कमरे से पुलीस को मीली है. इसी समय के दौरान सुरेन्द्रनगर
जीला के वढवाण तालुका के वडला गांव में दलित सरपंच पर जानलेवा हमला होने की खबर भी
मीली. 2013 विधानसभा का आनेवाला चुनाव रक्तरंजित होगा ऐसा राजकीय निरीक्षकों का
कहेना है. दलितों का हर दिन रक्तरंजित है और रात शोक की कालीमा ओढ़कर सोती है.
(30 जून 2012. थोराला की मुलाकात लेने गई सीवील सोसायटी की टीम में
थे रफी मलेक, प्रसाद चाको, होझेफा उज्जैनी, अशोक परमार, भानुबहेन परमार, कीरीट
परमार, डॉ. जयंती माकडीया, वृंदा त्रिवेदी तथा राजु सोलंकी)
ज़ालिमो, हमारा शिकार मत करो. हम इन्सान हैं. हमारे साथ वही सुलूक करो जो एक इन्सान दूसरे इन्सान के साथ करता है. अगर हमारे बर्दाश्त की हद से बढ़ कर अत्याचार करोगे, तो सोच लो हश्र क्या होगा!
ReplyDeleteबहुत दुखद है. ये है हमारा इक्कीसवीं सदी का महान भारत..
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