अहमदाबाद में आरएसएस की बैठक में कश्मीर, दलितों और आर्थिक मुद्दों पर चर्चा
हूई. (संदेश, ता. 29 नवेम्बर, 2013). वृत्तांत में आगे कहा गया है कि दलित बीजेपी
से विमुख है. इस स्थिति में दलितों को संघ के करीब लाने के लिये क्या करना चाहिए.
संघ के साथ उन्हे जोडकर उनके मन में छूपी ग्रंथियों को दूर करने का प्रयास वर्तमानपत्रों
के माध्यम से करना चाहिए.
मोहन भागवत जैसे लोगों के लिये बाबासाहब आंबेडकर ने सही कहा था कि ऐसे लोग यह
सच्चाई नहीं समजते कि उन्हे सुधरने की जरूर है. अस्पृश्यता दलितों की समस्या नहीं
है. अस्पृश्यता सवर्ण हिन्दुओं की समस्या है. सवर्ण हिन्दुओं के दिमाग की समस्या
है. अगर सवर्ण हिन्दु सुधरेगा नहीं तब तक अस्पृश्यता खतम होनेवाली नहीं है. सवर्णों
की बस्ती में, महोल्ले में दलितों को रहने नहीं दिया जाता, तो किसके मानसिक इलाज
की जरूर है? गांव में दलितों पर अत्याचार होता है, तो किसे सजा की जरूर है?
मोहन भागवत दलितों का माबाप बनने की कोशिश न करें तो अच्छा है. दलित एक मोहन
गांधी से उब चूके हैं, हमें दूसरे मोहन की कोई आवश्यकता नहीं है.
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